कटाक्ष : नतीजे निजीकरण (Privatization) के
आप कहें शिक्षा महंगी है, वे कहेंगे लोन है न आप कहेंगे इलाज महंगा है, वे कहेंगे इन्शुरन्स है न आप कहें पीने का साफ पानी नहीं है, वे कहेंगे आरओ है न आप कहें गर्मी बहुत बढ़ गयी है, वे कहेंगे एसी है न आप कहेंगे एयर पोल्युशन बहुत हैं, वे कहेंगे एयर प्यूरीफायर है न आप समस्या कहिए वे निदान में लाभ के मौके निकाल लेंगे।
आपके पास जितनी समस्या हैं उनके पास उससे ज्यादा निदान और उनसे व्यापार के मौके।
दिल्ली में ऑक्सीजन पार्लर खुल गया है। यदि आपको लगता है कि आप ये सब अफ़्फोर्ड कर लेंगे तो आप ये नहीं जानते हैं कि बाजार की रेंज क्या है! आज ही खबर पढ़ी कि चीन ने पूरे शहर के लिए एयर प्यूरीफायर लगाया है।
आप जहाँ सोचना बंद करते हैं बाज़ार वहां से सोचना शुरू करता है। याद ये भी रखें कि कानून के हाथ लंबे हो न हो बाज़ार के हाथ न सिर्फ लंबे होते हैं बल्कि बड़े भी होते हैं। उनके हाथ में व्यवस्थाएं खिलौना होती है। यही व्यवस्थाएँ हम इंसानों को खिलौना बनाए हुए हैं।
याद रखिए व्यवस्थाएँ हमारी सुविधा है इसे व्यसन न बनने दें। व्यसन को ईश्वर होते देर नहीं लगती है। यही दिखने लगा है। व्यवस्थाएँ हमारी व्यसन होने लगी है। इनसे बचिए।
जो भी सरकार हो, यदि हमारे प्राकृतिक और संवैधानिक अधिकारों से खिलवाड़ करेगी तो उसे किसी भी हालत में सहा नहीं जाना चाहिए। चाहे आप किसी का भी समर्थन करते हैं। प्राकृतिक और मौलिक अधिकारों के लिए लड़ाई की ही जानी चाहिए।
शिक्षा और स्वास्थ्य को जिन लोगों ने नोबेल प्रोफेशन कहा उन्होंने बहुत दूर देखा फिर भी चुक गये। ये नोबल प्रोफेशन हमारे देखते-देखते ही वहशियों के व्यापार में बदल चुके हैं। हमारी पिछली पीढ़ी ने उन्हें ऐसे ही व्यापार होते देखा और कुछ नहीं किया। अगली पीढ़ी ने उसके दुष्परिणाम देखें।
कई विद्वान कह रहे हैं कि कमाकर पढ़ाई नहीं की जा सकती है क्या! कुछ पश्चिम से भी सीखना चाहिए। सही है साहेब, सब पश्चिम से ही तो सीखा है।
सबके लिए शिक्षा भी, शिक्षा का अधिकार भी और शिक्षा का व्यवसायीकरण भी। सब तो पश्चिम से ही सीखा है। ये जो सस्ती या मुफ्त शिक्षा की व्यवस्था और मांग है न ये भी वहीं से आई है। समानता का विचार भी।
इसी सिलसिले में एक साथी से बात हो रही थी तो उसने बताया कि फिनलैंड में स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटी में एजुकेशन फ्री है। यह भी बताया कि वह जिस शहर में रहती है, वह फिनलैंड का तीसरा सबसे बड़ा शहर है, लेकिन वहां प्राइवेट स्कूल है ही नहीं।
आप जो भी हैं, जिस भी धर्म, जाति, पंथ, संप्रदाय, विचार, दल के समर्थक हैं यदि इस देश समाज को सुंदर और अपनी पीढ़ियों को इंसान बनाना चाहते हैं तो शिक्षा के निजीकरण का अपनी पूरी ताकत से विरोध करें।
आज नहीं करेंगे तो आने वाली पीढ़ियाँ आपको माफ नहीं करेगी। आप अपने बच्चों और उनके आगे वाली पीढ़ियों को शिक्षा से वंचित करेंगे।
ये आर्टिकल देवेंद्र हूण जी ने लिखा है जो अभी शोध छात्र (अर्थशास्त्र) चौधरी चरण सिंह विश्विद्यालय परिसर मेरठ है