किसान आंदोलनब्लॉगभारत

एमएसपी गारंटी की मांग क्यों जायज है

किसान आन्दोलन के एक बर्ष पूरे होने और 700 किसानों की शहादत के बाद इस दक्षिणपंथि सरकार ने किसानों पर थोपे गए तीन काले कानून तो बापस ले लिए लेकिन उनकी मुख्य माँग न्युनतम समर्थन मूल्य की गारंटी पर सरकार ने चुप्पी बना रखी है। इस पर आगे कमेटी बना कर विचार करने की सम्भावना हो सकती है ऐसा आश्वासन सरकार के प्रवक्ता भिन्न चैनलो पर आ कर देते फिर रहे हैं लेकिन दक्षिणपंथि अर्थशास्त्री और सरकार समर्थक कृषि विज्ञानी इसका घोर विरोध यह कह कर कर रहे हैं कि सरकार का कृषि कानूनों को वापस लेने का कदम अर्थ व्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव डालेगा और न्यूनतम समर्थन मूल्य पर गारंटी देना अर्थ व्यवस्था के लिए घातक सिद्ध होगा। किसान आन्दोलन के नेता सरकार के कृषि कानूनों को वापस लेने के बाद भी सरकार पर इसी कारण विश्वास नहीं कर पा रहे हैं और किसान आन्दोलन समाप्त कर घर बापस जाने को तैयार नहीं है।दक्षिण पंथी कृषि अर्थ शास्त्रियो का मानना है कि यदि फसलो का न्यूनतम मूल्य की गारंटी सरकार दे देगी तो सरकार इतना खाद्यान्न खरीदेगी कैसे और इसके लिए इतना पैसा कहां से आएगा।उनकी दूसरी आपत्ति है कि इससे महंगाई बढेगी और इससे गैर खेतीहर मजदूर अन्य पेशो मे लगे लोगो का जीवन बहुत कठिन हो जाएगा।वे मानते है कि किसानो कि यह मांग सैद्धान्तिक रूप से सही नही है और इस का क्रियान्वयन भी संभव नही है।


आज हम इन दोनो आशंकाओ पर चर्चा करेगे कि कैसे यह दोनो आशंका निर्मूल है और न्यूनतम समर्थन मूल्य की गांरटी व्यवहारिक है और अर्थ व्यवस्था के एक बूस्टर के रूप मे काम करेगी।केन्द्र सरकार आज भी मुख्य फसलो के लिए न्यूनतम मूल्य तय करती है और इस तय शुदा मूल्य पर कुछ फसलो का ,खाद्य सुरक्षा के लिए और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से सब्सिडी पर गरीब परिवार को भोजन सुरक्षा के तहत खाद्यान्न उपलब्ध कराने के लिए ,क्रय करती है जो कुल उत्पादन का 6 से 7% तक होता है और शेष 94% जिन्स खुले बाजार मे बिकता है । वर्तमान व्यवस्था मे भी प्रमुख जिन्सो के न्यूनतम मूल्य निर्धारण करने का एक लिखित उद्देश्य यह भी है कि यदि खुले बाजार मे इन जिन्सो के मूल्य यदि न्यूनतम मूल्य से नीचे गिरते है तो सरकार स्वयं न्यूनतम मूल्य पर खरीदारी कर खुले बाजार मे कीमतों को गिरन से रोके।लेकिन व्यवहार मे ऐसा होता नही है ।

केन्द्र सरकार सिर्फ सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए आवश्यक मात्रा ही खरीदती है और शेष ओपन मार्केट मे न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे ही बिकता है ।इसका सबूत यह तथ्य ही है कि समर्थन मूल्य पर बेचने के लिए किसानो मे होड़ मची रहती है और क्रय केंद्रो पर ट्रेक्टर ट्रालीज की लम्बी लम्बी लाईन लगी रहती है ।अक्सर शिकायत आती है कि सरकारी क्रय केंद्र पर कर्मचारीयो की मिलीभगत से व्यापारी किसानो से सस्ता खरीदकर अपना माल बेच जाते है ।किसान अपने कर्जे को जल्दी निपटाने के चक्कर मे मंडी के बाहर न्युनतम मूल्य के नीचे व्यापारीयों को बेचने के लिए मजबूर है।

यदि किसान मंडी तक आ जाता है तो मंडी के अंदर जहां सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे न बेच जाने देने के लिए जिम्मेदार है, वहां भी निम्न गुणवत्ता के नाम पर न्युनतम मूल्य से नीचे बेचे जाने के लिए मजबूर किया जाता है ।नतीजा यह है कि किसानों की 94%फसल न्युनतम मूल्य से नीचे बिक जाती है ।इसलिए न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारण करना ही सरकार का कर्तव्य नहीं होना चाहिए बल्कि यह सुनिश्चित करना भी होना चाहिए कि फसल का एक भी दाना न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे न बिके। चूंकि पूरी फसल खरीदना सरकारों के लिए खरीदना न तो व्यवहारिक है और न ही सरकारें आर्थिक रूप से सक्षम है ,इसलिए आवश्यकता है कि फसलों की न्यूनतम समर्थन मूल्य तय कर यह कानून बनाया जाए कि कोई भी व्यक्ति ,संस्था, या उद्योगपति किसी भी फसल को घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य के नीचे नहीं खरीद सकेंगे और यदि ऐसा करते हैं तो वह दण्डनीय अपराध होगा ।यदि ऐसा कानून जिसकी माँग किसान कर रहे हैं , आ जाए तो किसानों की आय बिना किसी लागत को कम किए या उत्पादन बढाए बिना ही उसी दिन से 70 से 140% तक बढ जाएगी ।इसे आप इस उदाहरण से समझ सकते हैं कि यदि धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1700रू है और वह 700से 1200 के बीच खुले बाजार में बिक रहा है तो न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदने की बाध्यता के कारण किसान को तत्काल 70 से 140% अधिक मूल्य मिलने लगेगा।

यह एक क्रान्ति होगी जिसमें किसान के हाथ में अधिक पैसा आने से अर्थ व्यवस्था और मजबूत होगी। धन का विकेन्द्रीकरण होगा, ग्रामीण बाजार में उपभोक्ता सामग्रियों की मांग बढेगी ।माँग बढने से उत्पादन बढेंगे और अधिक रोजगार उत्पन्न होगे।कृषि क्षेत्र से बाहर रोजगार निर्माण से कृषि पर आधारित जनसंख्या कम होगी ।किसानो और मजदूरों की क्रय शक्ति शक्ति बढने से देश की अर्थव्यवस्था का चक्का जोर से घूमने लगेगा।लेकिन यहां भी दक्षिणपंथी अर्थ शास्त्री एक शंका व्यक्त करें गे कि इससे तत्काल महंगाई बढेगी । लेकिन वह यह भूल जाते हैं कि न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे जिन्स खरीदने पर यह अन्तर उपभोक्ता तक आज भी नहीं जाता है ।न्यूनतम मूल्य पर आवश्यक खरीद से उत्पादन लागत नहीं बढेगी क्योंकि आज भी बाजार खुद के उत्पादन लागत तय करने के लिए जिन्स का न्यूनतम समर्थन मूल्य अपनी गणना मे लेते है।इसका इतना ही असर पडेगा कि बाजार खुद मे सुधार कर अपना मुनाफा कम करने पर मजबूर होगा और धन का अति केन्द्रीकरण रूकेगा यह धन अधिक हाथों तक पहुंच जाएगा ।सरकारों को जनता के दबाव में मुनाफा खोरी के खिलाफ कार्यवाही करनी होगी और परम्परा गत व्यापारी पद्धति में सुधार करना या बदलाव लाना होगा ।सहकारिता एक विकल्प के रूप में विकसित हो सकती है और यह पूरे विश्व के लिए उदाहरण बन सकता है ।

Ajay Gangwar

लेखक मध्य्प्रदेश सरकार के पूर्व आईएएस अधिकारी है अजय गंगवार मध्यप्रदेश सरकार के प्रमुख प्रशासनिक पदों पर अपनी सेवाएं दे चुके है.

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