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मगरमच्छ की चाल : शेर खुद ही घोषणा कर दे कि वह तब तक भोजन नहीं करेगा

केन्द्र सरकार ने संविधान संशोधन द्वारा अब राज्यों को यह अधिकार दे दिया है कि वे खुद किसी भी जाति को पिछड़ा घोषित करने के लिए सक्षम हैं ।इस ऐतिहासिक बिल को सभी दलों का समर्थन है । इस संशोधन के खिलाफ एक भी बोट नहीं गिरा।लोकसभा और राज्य सभा में बहस-मुबाहिसे मे सभी में इसका श्रेय लेने की होड़ थी। वे दल भी जो मण्डल के खिलाफ कमण्डल लाए थे और जिन्होंने सडकों पर इसके खिलाफ बवाल काटा था। लगता है कि इस देश में यह सहमति है कि आरक्षण का अब कोई विरोध नहीं करेगा चाहें उससे उनके समर्थकों को लाभ हो रहा हो या न हो रहा हो।


हिन्दुत्व के सबसे बड़े घोषित लम्वरदार ने भी बिल आने के दिन ही स्पष्ट कर दिया कि वे आरक्षण तब तक जारी रखना चाहते हैं जब तक कि गैर बराबरी समाज में समाप्त न हो जाए ।यह तो ऐसे ही है कि शेर खुद ही घोषणा कर दे कि वह तब तक भोजन नहीं करेगा जब तक वह यह सुनिश्चित न कर ले कि उसके भोजन से किसी की जान तो नहीं जाएगी। कट्टर हिन्दुत्व के पैरोकार गैर बराबरी समाप्त करना चाहते हैं, वह भी जाति समाप्त की घोषणा किए बिना ही। इस पूरी कवायत में पिछड़े वर्ग के नेता भी खुशी से ढपली बजा रहे हैं और अगडे वर्ग के नेता भी । बीजेपी जो अगड़ो की स्वाभाविक पार्टी है के वह भी ओबीसी का नगाड़ा बजा कर इतना शोर पैदा कर रही है कि ओबीसी की राजनीति करने वाले दलों को ही समझ में नहीं आ रहा है कि वो इसके आसन्न खतरे के बारे में आवाज बुलंद करें या चुप ही रहे।

उनकी गति सांप छछूंदर जैसी हो गई है ।वह जानते हैं कि ओबीसी की मांग तो नौकरियों में भरती करने और उसमे वृद्धि करने की थी लेकिन हिंदुत्ववादी ताकतों ने ऐन चुनाव के मौके पर ओबीसी समूह में अन्य जातियों को घुसने का रास्ता खोल दिया ।अब वे दबंग जातियों जो स्वयं के व्यवसाय और खेती करते थे और खुद को सवर्ण मानते रहे है , पिछले सात साल की गिरती आर्थिक अर्थ वयवस्था के कारण कमजोर हुए हैं और उनमें भी साधारण सरकारी नौकरियों के प्रति आकर्षण बढ रहा है, अब राज्यों में दबाव डाल कर खुद को ओबीसी घोषित करवा सकते हैं ।यह जातियां जैसे गुजरात के पटेल,महाराष्ट्र में मराठा, हरियाणा के जाट आदि अब पिछड़े वर्ग मे आसानी से शामिल हो जाएंगे जो मूलतः ओबीसी चेतना से कभी भी नहीं जुड़े रहे थे बल्कि अपर कास्ट के साथ मिलकर 90 से 2014 तक विरोध करते रहे हैं।

यह संघ की सोची समझी स्टेटिजक चाल है । वह चाहता है कि इन दबंग जातियों को ओबीसी में शामिल करा देने से दलित ओबीसी चेतना का जो गठबंधन पिछले सात सालों से हो रहा है ,जो भविष्य में उनको चुनौती दे सकता है, वह आपसी अन्तरविरोध से कमजोर हो जाएगा । गुजरात में यह अन्तरविरोध हार्दिक पटेल (पटेल समुदाय) , ठाकरे( पिछड़े वर्ग) और जिग्वानी(दलित) के बीच दिखा था और इसका फायदा बीजेपी को चुनावों में भी हुआ था ।अभी हाल में ओबीसी चेतना में जो हलचल हुई है उसका वास्तविक कारण यह है कि उपलब्ध पदों पर भर्तीयो पर अघोषित रोक लगा दी गई है और साथ ही साथ सार्वजनिक उपक्रमों और खासकर रेलवे को निजीकरण की ओर ढकेल कर भविष्य के नौकरियों पर भी ताले ड़ाले जा रहे है । सरकार की मौद्रिक नीति और राजस्व नीति बैंकिग व्यवस्था के गिरने से रोक पाने में नाकाम हो रही है।

उसकी धुर दक्षिणपंथि आर्थिक नीतिया रोजगार सृजन मे असफल हो रही हैं ।संघ की अर्थव्यवस्था को लेकर जो सोच है वह पुरातन है,इसलिए जाने माने अर्थशास्त्री इस सरकार के साथ काम करने मे अपने को असहज पाते हैं ।नीति आयोग निष्प्रभावी है ।वह केवल भगवा विचारधारा का केन्द्र बन कर रह गया है । केंद्र के द्वारा पेट्रोल और डीजल पर लगाए गए उच्च करो ने ऊर्जा और यातायात को महंगा कर दिया है ।निम्न और मध्यम वर्ग अपनी घटती हुई आय को लेकर चिंतित है। उद्योग और सेवा सैक्टर घटती माँग के कारण नय निवेश आ नहीं रहा है।

कृषक समाज की महंगे होते इनपुट से कमर टूटी जा रही है । नोटबंदी और बिना सोचे समझे लगाये लाॅक डाउन के कारण धवस्त आर्थिक हालातों में 2021 मे केन्द्र सरकार से आर्थिक और मौद्रिक सुधारों की अपेक्षा की जा रही थी ताकि अर्थव्यवस्था का पहिया घूमने लगे लेकिन सरकार बासी कढी में उबाल लाकर अपना बोट बैंक पक्का करना चाहती है।

नौकरियों में भरती और कर लाखो दलित पिछड़े और सामान्य वर्ग के युवाओं को अर्थ व्यवस्था से जोड़ने की जगह सरकार ने ओबीसी दड़बे मे मुर्गियाँ के साथ लोमडियो को शामिल करने का रास्ता खोल दिया है । दड़बे में पहले से ही कम दाना था ,अब उनकी संख्या ज्यादा होने से आपसी संघर्ष बढ जाएगा।आबादी का एक बडा हिस्सा पहले से ही पिछड़े वर्ग मे आता था अब नए अन्य जातियों को शामिल कर यह बास्केट और बड़ी हो जाएगी और परिणाम स्वरूप इन जातियों के बीच सीमित और घटती हुई नौकरियों के लिए प्रतियोगिता बढ जाएगी और दूसरी ओर सामान्य वर्ग से इन जातियों के हट जाने से वहां संख्या बल कम हो जाएगा और नौकरियों की संख्या स्थिर रहने से उच्च वर्ग को फायदा होगा । यह चाल संघ के कोर समूह के हितों की रक्षा करता है ,इसीलिए वह इसके पीछे खड़ा है।

संघ के समर्थन का मकसद यह भी लगता है कि आरक्षण वर्ग को इतना फुला दो कि यह खुद फूट कर खत्म हो जाए । संघ बिहार चुनाव के समय आरक्षण की समीक्षा की मांग कर अपने हाथ जला चूका है इसलिए उसने आरक्षण के समर्थन में स्टेटमेन्ट देकर अपने को यूपी चुनाव तक ओबीसी समर्थक घोषित कर दिया है । घटती नौकरी और बन्द होते सरकारी उपक्रमों की रणनीति से यह मनु वादी सोच सुनिश्चित कर रही है कि यदि मेरी एक आंख फूट भी रही है तो कोई बात नहीं कम से कम दूसरे कि तो दोनों फोड़ देने का लक्ष्य पूरा हो रहा है।

आरक्षण के लिए किया गया यह संविधान संशोधन आगे यह रास्ता खोल देगा कि राज्य सरकारें अपने तत्कालिक हितों के लिए किसी भी जाति समूह को ओबीसी घोषित कर देंगे और हम और आप उसका विरोध नहीं कर सकेंगे ।कल्पना कीजिए कि यदि कोई राज्य यह घोषित कर दे कि ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले ब्राह्मन /क्षत्रिय /वैश्य सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े है तो उन्हे ओबीसी में शामिल करने से आप कैसे रोक पाएंगे ।आप एक नागरिक के रूप में अपने को ठगा सा महसूस करेंगे।

आर्थिक आधार पर आरक्षण देने की इजाजत संविधान नहीं देताहै लेकिन किसी भी सांसद ने विरोध नहीं किया था और वह बिल पारित हो गया था ।यह संविधान का क्षरण है और उसी दिशा में एक और संवैधानिक संशोधन किया गया है । सत्ता के इस बन्दर बाँट खेल में एक दिन संविधान ही विलुप्त हो जाएगा तब किसमें आप संशोधन करेंगे ?

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