मनु रोग का वायरस फिर से जिन्दा कर दिया
सत्य ही इसको हरा सकता है और सत्य यह है कि इसने मनु रोग का वायरस फिर से जिन्दा कर दिया है और आज इस धार्मिक बीमारी के चपेट में दलित, पिछड़े,गरीब और कमजोर अर्ध शिक्षित सबसे ज्यादा है और इस वायरस के लिए उनकी अल्प शिक्षा और मनोदशा ही सबसे अनुकूल है ।जितना यह उनको अपनी गिरफ्त में लेता जायेगा उतना ही वो आर्थिक रूप से कमजोर होते जाएंगे साम्प्रदायिकता और अंधविश्वास मे फंसते जायेंगे। उन्हे खुद पता भी नहीं चलेगा कि वे कब बीमार हो गए.
इस वायरस कि वैक्सीन जब तक समाज को नहीं लगेगी समाज इस बीमारी से मुक्त नहीं हो सकता है और जो समझते हैं कि यह मनु रोग उन्हे आपदा से अवसर देगा वे भी देर सबेर इसके चपेट में आएंगे और वह दौर उनके लिए और भी बहुत खतरनाक होगा।सौभाग्य से इस वायरस का टीका महा मानव बुद्ध ने हजारों साल पहले खोज लिया था जिसने पूरी मानव सभ्यता की मदद की लेकिन दुर्भाग्य से जिस देश ने टीका खोजा था वहीं उसे नष्ट कर दिया गया।
आज आवश्यकता है कि उस टीके को फिर से तैयार किया जाए और समाज को उपलव्ध कराया जाए ताकि इस महामारी से समाज को बचाया जा सके अन्यथा यह इस देश को फिर चपेट में ले कर अन्धे युग की ओर ले जाएगी जिस से पिछले 65 साल मे बाहर आ रहा था ।हम सब जानते थे कि यह मनु वायरस हमारे साथ ही सुप्तावस्था में है लेकिन हम समझते थे कि यह अब सक्रिय नहीं होगा लेकिन हमारा यह अनुमान गलत निकला ।अभी भी समय है कि हम इस सत्य को स्वीकारें और इस वायरस का मुकाबला बौद्ध चिंतन से करें ।