श्रम की गरिमा – अब्राहम लिंकन
अब्राहम लिंकन के पिता जूते बनाते थे, जब वह राष्ट्रपति चुने गये तो अमेरिका के अभिजात्य वर्ग को बड़ी ठेस पहुँची!
अब्राहम लिंकन अमेरिका के सोलहवें राष्ट्रपति थे और रिपब्लिकन पार्टी से थे. उन्हें दास प्रथा को खत्म करने और अमेरिकी गृहयुद्ध से निजात दिलाने का श्रेय जाता है. अब्राहम लिंकन का जन्म एक गरीब अश्वेत परिवार में हुआ था और उन्हें गरीबी की वजह से कई मुश्किलों को सामना करना पड़ा. – वे प्रथम रिपब्लिकन थे जो अमेरिका के राष्ट्रपति बने.
अब्राहम लिंकन के पिता जूते बनाते थे, जब वह राष्ट्रपति चुने गये तो अमेरिका के अभिजात्य वर्ग को बड़ी ठेस पहुँची!
अभिजात वर्ग – राजनीतिक और सामाजिक सिद्धांत रूप में, अभिजात वर्ग (फ्रेंच कुलीन, लैटिन eligere से) शक्तिशाली लोग हैं, जो एक ऐसे समाज में धन, विशेषाधिकार, राजनीतिक शक्ति, या कौशल की आय से अधिक राशि पकड़ के एक छोटे समूह हैं।
सीनेट के समक्ष जब वह अपना पहला भाषण देने खड़े हुए तो एक सीनेटर ने ऊँची आवाज़ में कहा..
मिस्टर लिंकन याद रखो कि तुम्हारे पिता , मेरे और मेरे परिवार के जूते बनाया करते थे…!! इसी के साथ सीनेट भद्दे अट्टहास से गूँज उठी.. लेकिन लिंकन किसी और ही मिट्टी के बने हुए थे..!! उन्होंने कहा कि मुझे मालूम है कि मेरे पिता जूते बनाते थे ! सिर्फ आप के ही नहीं यहां बैठे कई माननीयों के जूते उन्होंने बनाये होंगे ! वह पूरे मनोयोग से जूते बनाते थे, उनके बनाये जूतों में उनकी आत्मा बसती है, अपने काम के प्रति पूर्ण समर्पण के कारण उनके बनाये जूतों में कभी कोई शिकायत नहीं आयी…!! क्या आपको उनके काम से कोई शिकायत है ? उनका पुत्र होने के नाते मैं स्वयं भी जूते बना लेता हूँ और यदि आपको कोई शिकायत है तो मैं उनके बनाये जूतों की मरम्मत कर देता हूं…!! मुझे अपने पिता और उनके काम पर गर्व है…!!
सीनेट में उनके ये तर्कवादी भाषण से सन्नाटा छा गया और इस भाषण को अमेरिकी सीनेट के इतिहास में बहुत बेहतरीन भाषण माना गया है…।
उसी भाषण से एक थ्योरी निकली Dignity of Labour (श्रम का महत्व) और इसका यह असर हुआ की जितने भी कामगार थे उन्होंने अपने पेशे को अपना सरनेम बना दिया।
*जैसे :~ *कोब्लर, *शूमेकर, *बुचर, *टेलर, *स्मिथ, *कारपेंटर, *पॉटर आदि।
अमेरिका में आज भी श्रम को महत्व दिया जाता है इसीलिए वह दुनियाँ की सबसे बड़ी महाशक्ति है।
वहीं भारत में जो श्रम करता है उसका कोई सम्मान नहीं है वह नीच है तथा यहां जो श्रम नहीं करता वह ऊंचा है।
जो यहां सफाई करता है उसे हेय (नीच) समझते हैं और जो गंदगी करता है उसे ऊँचा समझते हैं।
ऐसी गलत मानसिकता के साथ हम दुनियाँ के नंबर एक देश बनने का सपना सिर्फ देख सकते है.. लेकिन उसे पूरा नहीं कर सकते.. जब तक कि हम श्रम को सम्मान की दृष्टि से नहीं देखेंगे।
ऊँच-नीच का भेदभाव किसी भी राष्ट्र के निर्माण में बहुत बड़ी बाधा है!..