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ऊँची बोली और लालची जनता ठग ली गयी

यह 1972-74 की बात है। मैं सातवीं कक्षा में केन्द्रीय विद्यालय फतेहगढ (उ प्र) मे पढ़ता था और हॉस्टल में रहता था।मेरे पिताजी की पोस्टिंग उन दिनों अलीगंज ,एटा जिले में थी । फतेहगढ से अलीगंज जाने के लिए मुझे कायमगंज तक ट्रेन से जाना पडता था फिर वहां से अलीगंज के लिए बस मिलती थी।बस स्टेन्ड रेलवे स्टेशन से लगा हुआ था.

जहां से प्राइवेट बसे चलती थी और उनका नियम था कि जब तक बस भर नहीं जाती थी वो छूटती नहीं थी। बस का नम्बर आने के बाद उसे भरने में लगभग एक से दो घंटे लग जाता था ।इस दरम्यान बस में ककडी,मूंगफली बेचने वाले से लेकर कपडे बेचने बाले तक अपना माल बेचने के लिए बस के अन्दर आते थे लेकिन कपडे बेचने बाले अपनी लच्छेदार भाषा में बस चलने के इन्तजार तक लोगों का ध्यान अपनी तरफ सबसे ज्यादा खींचते थे।

वे बस मे चढते ही शुरू हो जाते, कि मेहरवान कद्रदान आप कश्मीर की शाल देखें , आपको पसंद आए तो बोली लगाये , अगर अन्तिम बोली कीमत से कम होगी तो आपको ईनाम में कंघा मिलेगा । अक्सर बोली लगाने की कोई शुरुआत नहीं करता था , फिर यका यक वह चिल्लाने लगता कि इन साहब ने 10 रूपये बोली लगाई है , ये साहब हजार रुपये की शाल 10 रू में लेना चाहते हैं, क्या कोई और बोली लगायेगा।
बस में फिर भी कोई आवाज़ नहीं आती फिर वह किसी की आंख मे आंख डालकर बोलता किआप इसके उपर बोली लगायेगे और वह शख्स अचकचाकर बोली बढाकर 15-20बोल देता था। फिर सिलसिला शुरू हो जाता। बस मे बैठी सवारीयां इस खेल में शामिल हो जाती थी ।

बोली ऊपर जाने लगती। एक उंची बोली पर आकर वह कहता है कि आप लोग मजाक कर रहे हैं, खरीदना नहीं चाहते हैं, इसलिए ऊँची बोली बाले को

कंघा देकर शाल अपने बैग में रख लेता। फिर वह एक पैंट का कट पीस निकालता और बताता कि यह भीलवाड़ा का कपडा है बाजार में आपको 200 से कम नहीं मिलेगा,बोली लगाये यदि परता पड़ा तो देकर जाउँगा।खेल फिर शुरू होता । अधिकतम बोली 40-50 पर आकर टूट जाती ।वह अधिकतम बोली लगाने वाले को एक क॔घा दे देता ।तीसरे दौर में वह शर्ट का कपडा निकालता, बोली लगवाता और अधिकतम बोली को इनाम में कंघा देता और घोषणा करता कि आप लोग खरीदना ही नहीं चाहते हैं सिर्फ इनाम के लिए बोली लगा रहे हैं | लीजिए में अन्तिम कोशिश करता हूँ।

अब इस पेंट और शर्ट के कपडे की एक साथ बोली लगाईये ।दोनों की अधिकतम बोली को जोडकर उससे नीचे से बोली शुरू हो जाती और अधिकतम बोली उसके आस पास पहुचती थी । इस पर वह कहता कि देखिए इन साहब ने इनाम के लालच में बोली लगाई है और फिर वह अधिकतम बोली बाले से पूछता है कि आप इनाम के लिए बोली लगा रहे हैं कि या खरीदना है,यदि खरीदना है तो पैसे दिखाईये।

उस शख्स की ओर सभी की नजरें टिक जाती और उस सवारी को न चाहते हुए भी कहना पडता है कि खरीदने के लिए बोली लगाई थी और जेब से पैसे लेकर दिखाता है । वह शख्स सवारी कोई मौका दिए बिना पैसे लेकर पैंट-शर्ट का कपडा उस सवारी को देकर नीचे उतर जाता और बस भी चल देती । आगे बस निकल जाने पर कोई न कोई भुक्त भोगी बता ही देता था कि आप इनाम के चक्कर मे ठग गए हैं पहली धुलाई में कपडा जीर्ण शीर्ण हो जाएगा ।

यही हाल आज जनता का है जिसे आज के हुक्मरानो ने ठग लिया है ।जनता जानती थी कि वो अंत में ठगी जाएगी लेकिन लालचके कारण फंस गई।

Ajay Gangwar

लेखक मध्य्प्रदेश सरकार के पूर्व आईएएस अधिकारी है अजय गंगवार मध्यप्रदेश सरकार के प्रमुख प्रशासनिक पदों पर अपनी सेवाएं दे चुके है.

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