गाँव स्पेशल

इतिहास रचते महाराष्ट्र( मराठवाड़ा) इलाके के गाँव

महाराष्ट्र के मराठवाड़ा इलाके के बारे में जो सूखे के लिए जाना जाता है, मराठवाड़ा के बीड़ जिले की हालत और भी खराब है, लेकिन यहां के 15 गांव मिलकर जो कुछ कर रहे हैं, वह सचमुच सराहनीय है।

  • ये महाराष्ट्र का मराठवाड़ा इलाका है, वैसे तो इसमें कुल 2092 गाँव आते है लेकिन, इनमे से ज्यादातर गावों में पानी की समस्या है और इन गावो में पानी की आपूर्ति के लिए महाराष्ट्र सरकार ने 2063 टैंकरो को नियुक्त किया गया है ।
  • आप इतने से अंदाजा लगा सकते है की कितनी किल्लत है यहाँ, और यह जगह उन दिनों सुर्खियों का विषय बन गया जब देश-भर में सबसे ज्यादा इस इलाके के किसानों ने आत्महत्या की।
  • सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार, मराठवाड़ा में 422 किसानों ने 2014 में आत्महत्या कर ली थी, यही संख्या 2018 में बढ़कर 909 हो गयी, यह फसल के नुकसान को सहन करने में असमर्थता और पानी की कमी और कृषि संकट के कारण लोगो ने ऐसा किआ था।
  • अब तो हालात में लोगो के सुधार हुआ है वार्ना उन दिनों आलम ये था की कई गावों में बिजली के खम्भे भी नहीं थे।
  • सीमित परिवहन सुविधाओं और बैंकिंग सुविधाओं के न होने के कारण और खराब बिजली की आपूर्ति ने मराठवाड़ा की आर्थिक प्रगति को धीमा कर दिया, इसलिए मराठवाड़ा को अभी भी महाराष्ट्र के अन्य क्षेत्रों की तुलना में पिछड़े क्षेत्र के रूप में कहा जाता है।
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कौन मयंक गांधी भारत के एक सामाजिक कार्यकर्तायंक गाँधी

मयंक गांधी भारत के एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं। वह पहले इंडिया अगेंस्ट करप्शन आंदोलन में कोर कमेटी के सदस्य और आम आदमी पार्टी (आप) के राष्ट्रीय कार्यकारी सदस्य थे, और अब ये ग्लोबल पर्ली के मुख्य संस्थापक है। और ये भारत के गावो में परिवर्तन लाना चाहते है, ग्लोबल पर्ली के माध्यम से भारत के निर्माण के लिए एक महत्वपूर्ण योजना के तहत काम करते है, और ये चाहते है की जो ब्यक्ति भी गावों के लिए कुछ करना चाहता है वह उनसे जुड़ सकता है और काम कर सकता है।

इन्होने इसकी शुरुआत कैसे की:-

  • यह 2016 के दिनों में मयंक गांधी ने राजनीति छोड़ दी थी लेकिन, देश को बदलने की आग इनके भीतर जलती रही, इनका मानना यह था की राजनीति लोगों के जीवन को बेहतर बनाने का एकमात्र तरीका नहीं हो सकता है।
  • इसी समय महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में एक भयंकर सूखे की रिपोर्ट ने इनको हताश करदी और इस संकट से निपटने के लिए इन्होने ग्लोबल पर्ली योजना की शुरुवात की ।
  • मराठवाड़ा के बीड़ जिले में देश के सबसे ज्यादा आत्महत्या होती थी और मराठवाड़ा में सबसे ज्यादा सूखा प्रभावित क्षेत्र थे।
  • मयंक मराठी न जानते हुए भी यहाँ के लोगों के साथ काम करने का निश्चय किया और इन्होने पहले ग्रामीण लोगो के जीवन की कठिनाइयो और चिंताओं को जाना और समझा था।
  • यहाँ हर परिवार की औसत मासिक आय लगभग 3500 रुपये थी, बांध थे ही नहीं, और पीने के पानी की कमी थी, कुपोषण से होने वाली मौतों आम बात जैसी थी।
  • सबसे महत्वपूर्ण बात, लोगों में मतभेद, संघर्ष और असमानता थी, राजनीति और जातिवाद ज्यादा था।
  • पर्ली में 15 गांवों के साथ ग्लोबल पर्ली नामक इस संस्थाको बनाने का निर्णय लिया, और यह सफल रहा, इनका मानना यह की इस मॉडल के सफलता के बाद, इसे पूरे देश में दोहराया जाएगा।

भारत में कभी यह गांव सबसे ज्यादा किसानों की आत्महत्या के लिए सुर्खिया बटोरता था, लेकिन आज भी यह गांव सुर्खिया तो बटोर रहा है लेकिन वजह कुछ अच्छे है, पर्ली के लोगों में आज आत्मनिर्भरता झलकता है। ग्लोबल पर्ली ने यहां के लोगों की सोचने-समझने की क्षमता को बदला है । यहाँ के गांव वालो ने यह काम करके राजनेताओं को एक जोरदार चाटा जड़ा है, और इन लोगो ने गांव की अखंडता में एकता को दिखाया है। इस काम को सफल होने के बाद गाँववालो का एक-दूसरे को देखने का नजरिया बदला है, अब ये लोग जाती, धर्म में विश्वास बिल्कुल भी नहीं रखते, यहीं कारण है की इस गांव में आपको अपने देश की सामाजिक और सांस्कृतिक झलक देखने को मिल सकती है।

 

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