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योजना आयोग को खत्म करके नीति आयोग क्यों बनाया गया ?

नीति आयोग अनीति आयोग है ।योजना आयोग को खत्म कर नीति आयोग मनु वादी संगठन की उस सोच की परिणति है जो मानते है कि योजना पश्चिम की अवधारण है और नीति हिन्दूओ का मैलिक विचार है ।

नीति इन्हे काल्पनिक चाणक्य से जोड़ती है ।नीति में छल और धूर्तता शामिल हो सकती है जबकि योजना किसी उद्देश्य या लक्ष्य के लिए तैयार की जाती है ।योजना बनाते समय आपको लक्ष्य सार्वजनिक करना होगा और आप इस कारण उसमें धूर्तता का पुट नहीं डाल सकते हैं

जबकि नीति निर्धारण प्रकिया मे निजता शामिल है , उसमें अधिक से अधिक लोग शामिल नहीं हो सकते हैं और लक्ष्य भी सार्वजनिक नहीं होता है । नीति निर्धारण में गोपनीयता और चन्द महत्वपूर्ण लोगों की सहभागिता सबसे महत्वपूर्ण तत्व होते हैं ।योजना आयोग और नीति आयोग में यही अन्तर है । कौन नीति बना रहा है यह सार्वजनिक नहीं है और क्या लक्ष्य है ,यह भी पता नहीं है ।

नीति आयोग ऐसे काम कर रहा है जैसा चाणक्य नीति कहती है कि प्रजा का सबसे बडा कर्तव्य है कि वह राजा के प्रति निष्ठा कम नहीं करे और राजा को अपना पालनहार समझे ।राजा के प्रति निष्ठा और राष्ट्र प्रेम में चाणक्य नीति अन्तर नही करती है । नीति के अनुसार जनता को राष्ट्र के लिए अपना सबकुछ न्योछावर करने मे हिचकना नहीं चाहिए और राजा को भी पडोसी देशों से हमेशा संशकित रहना चाहिए ,उष पर विश्वास नहीं करना चाहिए और इसके लिए उसे अपने संसाधनों का पहला उपयोग सेनाओं को सशक्त करने मे करना चाहिए ।

जब राजा शक्तिशाली हो जाए तब उसे जनता की भलाई के लिए कुछ काम करना चाहिए और उसमें भी पहली प्राथमिकता उसे धर्म को देनी चाहिए फिर व्यापार को और अंतिम प्राथमिकता किसान मजदूरों की होनी चाहिए ।नीति आयोग की किसान मजदूर बेरोजगार युवाओ के लिए क्या नीति है ,किसी को नहीं मालूम है ।

आज का नीति आयोग भी उसी चाणक्य नीति का विस्तार है जो भारतीय इतिहास में एक काल्पनिक पात्र है जो इसलिए रचा गया था ताकि समाज में ब्राह्मण वर्ग की श्रेष्ठता स्थापित की जा सके।

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