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पेगासस विवाद – दो जासूस करे महसूस दुनिया उनकी जेब में

फिल्म ‘दो जासूस’का एक बहुत लोकप्रिय गाना था कि ‘”दो जासूस करें महसूस कि दुनिया बड़ी खराब है ” लेकिन यहां तो उलटा हो गया, दुनिया महसूस कर रही है कि जासूस बड़े खराब हैं ।उस समय जासूस आपका पीछा भौतिक रूप से करते थे और वे कानून का भी ध्यान रखते हुए आपकी निजी जिंदगी में उतना ही दखलंदाजी देते थे जितना जासूसी करते समय पकडे जाने पर वे कानून के शिंकजे मे न आ सके लेकिन इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस में यह सीमा सुनिश्चित करना सम्भव नहीं है ।जासूस भी कोई व्यक्ति नहीं है बल्कि साफ्टवेयर है जो किसी निजी एजेंसी या सरकारों के कब्जे में होता है । अब प्रश्न यह है कि क्या लोकतांत्रिक सरकारें सुरक्षा के नाम पर आपकी निजता पर घुसपैठ कर सकती हैं? अगर कर सकती है तो रह निर्णय कौन लेगा कि किसको सर्विलांस मे लेना है और उसकी प्रक्रिया किया होगी ? सरकारों ने इसे नौकरशाहों और सुरक्षा एजेंसियों के प्रमुखों के विवेक पर छोड़ दिया है और दुर्भाग्य से उनका विवेक सत्ता धीशो के पास उस पद पर पहुंचने के एवज में ही गिरवी मे रखा रहता है । ऐसे में इस अधिकार का दुरुपयोग नहीं होगा यह मानना मूर्खता ही होगी। किसी भी देश का लोकतंत्र संवेदनशील सत्ता पक्ष , जिम्मेदार विपक्ष, स्वतन्त्र न्यायपालिका और विश्वसनीय पत्रकारिता के कन्धो पर ही सुरक्षित रह सकता है ।अगर सत्ता पक्ष अपनी सत्ता बचाने के लिए सर्विलांस के जरिए विपक्ष ,पत्रकार और न्यायपालिका के लोगों की ही जासूसी करने लगे तो लोकतंत्र की यह इमारत ढह जाएगी । द फारविडन और द वायरस की रिपोर्ट यदि सच है तो, सरकार एक गम्भीर आरोप में घिरी हुई है । आरोप मात्र जासूसी का ही नहीं है बल्कि लोकतंत्र की हत्या करने का है। सृष्टि के हर प्राणी की निजिता उसका एक प्राकृतिक और मौलिक अधिकार है ।आप जब एक जानवर की निजिता का भी अतिक्रमण करते हैं तो वह भी उसकी सुरक्षा के लिए आक्रमक हो जाता है फिर मनुष्य तो संवेदनशील प्राणी है ।यही कारण है कि जासूसी करने का किसी भी काल व देश में स्वागत नहीं किया गया है ।यह राज्य का सबसे अलोकप्रिय हथियार है जिसे वह सिर्फ राष्ट्र की सुरक्षा के लिए उपयोग मे लाता है अन्यथा जनमानस ने स्वीकृति नहीं दी है। आज इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस के लिए जो साफ्टवेयर उपलव्ध हैं उसमें इजरायल का पेगासिस सबसे खतरनाक है और इसी कारण उस कम्पनी की खुद की यह घोषित नीति है कि वह इसे सरकारों के अलावा किसी को नहीं देती है ।अब सबाल यह है कि यदि यह साफ्टवेयर सरकार ने उस कम्पनी से नहीं खरीदा तो वह दूसरा कौन है जो सरकार के नाम पर यह साफ्टवेयर खरीद लिया है ।द वाशिंगटन पोस्ट अपनी 19 जुलाई की रिपोर्ट में लिखता है कि सिटीजन लैब यूनिवर्सिटी ऑफ टोरांटो, जो पेगासिस के साफ्टवेयर का विशलेषण करने मे विशेषज्ञता रखती है, का कहना है कि उनके पास भारत सहित 10 देशों में इस साफ्टवेयर को उपयोग में लाने के सबूत है । इस रिपोर्ट के अनुसार भारत में पेगासिस साफ्टवेयर द्वारा सर्विलांस मे रखे जाने की सूची में जाने माने पत्रकार,विपक्ष के नेता, एक्टिविस्ट और यहां तक कि एक पब्लिक हैल्थ से जुडी वैज्ञानिक का भी नाम भी शामिल है।यह रिपोर्ट भारत के सात मोबाइल फोन्स मे इस पेगासिस साफ्टवेयर होने की पुष्टि भी करती है ।एन एस ओ कम्पनी के अनुसार तो वह केवल आतंक वाद और गंभीर अपराधों के अन्वेषण के लिए ही सरकारी एजेंसियों को ही लाइसेंस देती है और सरकार इससे इनकार करती है तो यह और भी गम्भीर मसला है ।अगर यह साफ्टवेयर भारत सरकार के नाम पर किसी अन्य के पास है तो भारत के रक्षा तन्त्र को ही खतरा पैदा हो जाएगा जिसके नाम पर सरकारों को जासूसी करने का अधिकार मिलता है । अभी हाल में कई रक्षा संस्थानों पर हुए हमले क्या इस ओर इंगित नहीं करते हैं ? एक स्वतंत्र न्याय पालिका की अवधारणा के बिना लोगों के मौलिक अधिकार सुरक्षित नहीं रह सकते हैं। सर्वोच्च न्यायालय के अभी हाल में मौलिक अधिकारों की सुनवाई और निर्णयों को लेकर भी प्रशन उठे है, क्या उसके तार जासूसी कांड से जुड़े नहीं हो सकते हैं? विपक्ष की सरकारों की अस्थिरता और उनका अल्पकालिक होना क्या कुछ सन्देह पैदा नहीं करता है? पत्रकारिता की निष्पक्षता पर समय-समय पर प्रशन उठना और उसका गोदी मीडिया मे बदल जाना क्या इस जासूसी का परिणाम तो नही है ? यह सब प्रश्न राष्ट्र की सर्वोच्च सार्वभौमिकता से जुड़े है । यदि इन्हे यह कह कर हल्का नहीं किया जा सकता है कि अगर आप ने गलत नहीं किया है तो डरते क्यों है, जैसा कि तर्क प्रतिष्ठित पत्रकार वैदिक प्रताप अपने एक लेख में देकर, इस राष्ट्र द्रोही गतिविधि को कम करके आंकने की कोशिश कर रहे हैं। अब सबाल है कि इससे आगे कैसे निकला जाए ।चूंकि सरकार खुद आरोपों के कटघरे में खड़ी है इसलिए उसके स्पष्टीकरण का कोई अर्थ नहीं है ।इस जासूसी कांड , जिसकी तुलना वाटर गेट कांड से की जा रही है ,के प्रेस मे आने और भारतीय संसद के जुलाई 21के सत्र के शुरू होने की तिथि को लेकर क्रोनोलाजी की बात की जा रही है तो इस पर भी ध्यान जाता है कि इजरायल को लेकर और भारत के कूटनीतिक संबंधो में निर्णायक परिवर्तन 2017 से आए हैं और इसी समय काल की ओर यह खोजी पत्रकारिता भी इंगित कर रही है । वाटरगेट कांड की तरह इस जासूसी कांड की जांच भी पार्लियामेंट कमेटी को ही करना चाहिए है जिसके लिए जे पी सी का गठन देश हित में तत्काल होना चाहिए ।

आप अब गाना एन्जॉय कीजिये

Ajay Gangwar

लेखक मध्य्प्रदेश सरकार के पूर्व आईएएस अधिकारी है अजय गंगवार मध्यप्रदेश सरकार के प्रमुख प्रशासनिक पदों पर अपनी सेवाएं दे चुके है.

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