तस्वीरों में उतरती औद्योगिक कारखानों की सुंदरता
कभी कारखाने देखे हैं, पुराने या नए? वे एक अलग तरह का अहसास देते हैं. जूते की फैक्टरी हो, बिजली का प्लांट या बंदरगाह. दूर दूर तक फैली मशीनें या स्टील की पाइपों का जाल. नहीं देखी हैं तो एलेस्टर वाइपर की तस्वीरें देखिए.
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बड़ी बड़ी पाइपें, स्टील के प्लैटफार्म, एक ओर से दूसरी ओर जाते तार, इन्हें देखने पर उद्योग और औद्योगिक संयंत्रों की एक ऐसी दुनिया दिखती है जो आम तौर पर सामान्य इंसानों के लिए अनदेखी रह जाती है. देहाती इलाकों में बहुत से कारखाने नहीं हैं, और अगर हैं तो उन्हें ऐसे संभाल कर रखा जाता है कि वहां तक पहुंचना असंभव है. यहां तक कि पुराने, टूटे फूटे कारखानों को भी भारी सुरक्षा में रखा जाता है. ब्रिटेन के फोटोग्राफर एलेस्टर फिलिप वाइपर ने इन कारखानों को अपना बना लिया है. उन्हें ये नए पुराने कारखाने इतने पसंद हैं कि वे अब सिर्फ इन्हीं जगहों की तस्वीर लेते हैं. कारखानों का अंदरूनी घरौंदा उन्हें इतना भा गया है कि इनकी तस्वीर लेने कहीं भी पहुंच जाते हैं. कोपनहागेन का नया बिजली प्लांट अमा बाके का अंदरूनी हिस्से भी उनकी पसंदीदा जगह है. एलेस्टर वाइपर बताते हैं, “मैं पाइप और ट्यूब को रेसिस्ट नहीं कर सकता, इसलिए मेरे पास तारों, केबल और पाइप की लाखों तस्वीरें हैं.”
औद्योगिक संयंत्रों को लेकर एलेस्टर वाइपर का खास नजरिया है. उनकी तस्वीरों में पाइप, ट्यूब और मशीनें जीवंत हो उठती हैं और वे ग्राफिक मॉडल या एब्सट्रैक्ट आर्ट की तरह नजर आने लगती हैं. 40 साल के फोटोग्राफर अलेस्टर उबाऊ हॉलों को कलात्मकता देते हैं और इन जगहों के लिए लोगों के मन में आकर्षण पैदा करते हैं. सबसे ज्यादा तो वे खुद ही आकर्षित हैं इन बड़े बड़े ढांचों से. हमें बताते हैं, “मैं चकित हूं, यह देखकर कि इंसान इस तरह की बड़ी बड़ी संरचनाएं बना सकता है. इन्हें देखकर लगता है, वाउ, अद्भुत है ये.”
उद्योग के ढांचों के लिए एलेस्टर का आकर्षण निश्चित तौर पर बचपन की उस इच्छा से आता है कि आप उन जगहों पर जाना चाहते हैं जहां दूसरे नहीं जा सकते. उनकी तस्वीरों को देखें तो वे सपाट होते हुए भी रोमांच पैदा करती हैं. दस साल पहले एलेस्टर वाइपर्स का औद्योगिक संयंत्रों से प्रेम शुरू हुआ. उन्हें खासकर कारखानों की अनचाही खूबसूरती आकर्षित करती है. लेकिन हमें उनकी तस्वीरें इस बात से भी रूबरू कराती है कि हम क्या बना रहे हैं और उसे किस तरह बना रहे हैं? अब वो चाहे सॉसेज तैयार करने वाले रोबोट हों, या एटम से बिजली बनाने वाले परमाणु संयंत्र. स्पेस सिमुलेटर इतना बड़ा, कि पूरा का पूरा अंतरिक्षयान इसमें समा जाए. यहां तक कि नए कंटेनर शिप भी जिनमें हजारों कारों को दुनिया के एक कोने से दूसरे कोने में ट्रांसपोर्ट किया जाता है.
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एलेस्टर वाइपर कहते हैं कि उन्हें इन संयंत्रों का ग्राफिक एलिमेंट और आकार रोमांचित करता है.लेकिन इनमें वे एक कहानी भी देखते हैं, कहानी उस जिंदगी की जो हम जीते हैं, किस तरह जीते हैं, उसका कितना हिस्सा हम खुद बनाते हैं और उसका कितना बड़ा हिस्सा दुनिया भर में ट्रांसपोर्ट किया जाता है. एलेस्टर 2004 में डेनमार्क पहुंचे और फिर वहीं के होकर रह गए. फोटोग्राफी उन्होंने खुद सीखी और ये तय किया कि उनकी तस्वीरें स्वाभाविक रहेंगी, वे उनमें किसी तरह का बदलाव नहीं करेंगे. वे कहते हैं, “समस्या उसे एडिट करने की नहीं है, मैं वह सामने लाना चाहता हूं जो सचमुच मौजूद है, उसमें कुछ जोड़ना नहीं चाहता.”
एक बात जो उनकी तस्वीरों में दिखती है कि उसमें इंसान नहीं होते. इसके पीछे उनकी एक ही दलील है कि वे इंसान को अपनी तस्वीरों में तभी जगह देते हैं जब उन्हें लगे कि उससे कहानी में कुछ नया आएगा. एलेस्टर कहते हैं, “ये मशीनें भी लोगों के बारे में ही हैं. इन्हें लोगों ने ही बनाया है. हो सकता है कि तस्वीरों में लोग नहीं हों, लेकिन वे मानवीय हैं.” इस तरह उनकी तस्वीरें लोगों के ना होने के बावजूद लोगों की कहानी ही कहती हैं, उनके काम के बारे में, उनकी जरूरतों के बारे में.
एलेस्टर वाइपर की तस्वीरों की प्रदर्शनी दुनिया भर में होती है. पिछले दिनों उनकी तस्वीरें फ्रांस के बोर्दो में में दिखाई गईं. वे कहते हैं, “मेरी तस्वीरों में बहुत सारी फैंटसी है. लोग इस तथ्य से रोमांचित होते हैं कि इंसान ही इस तरह की चीजें बना रहा है, लेकिन मैं चाहता हूं कि वे ये भी सोचें कि ये सब हमें कहां ले जा रहा है, क्या हो सकता है. एलेस्टर वाइपर हमेशा एक तलाश में होते हैं, अपनी तस्वीरों के लिए नई नई जगहों की खोज में. वे चाहते हैं कि और औद्योगिक संयंत्रों की तस्वीर लें और इनके जरिए लोगों को पर्दे के पीछे की दुनिया से रूबरू कराएं, और उनकी कुछ अलग सी सुंदरता हमारे सामने लाएं