फर्रुखाबाद : सपा जिला पंचायत प्रत्याशी सुबोध यादव सहित तीन की अंतरिम जमानत खारिज
सपा जिला पंचायत प्रत्याशी सुबोध यादव सहित तीन की अंतरिम जमानत जिला जज ने ख़ारिज कर दी , डॉ सुबोध यादव को अखिलेश के बहुत करीबी नेताओं में गिना जाता है
सांसद मुकेश राजपूत के भतीजे राहुल राजपूत पर जान लेवा हमले और अपहरण के प्रयास के आरोपी सपा प्रत्याशी सुबोध यादव और साथी उमेश यादव सहित दो मामलों में तीन की अंतरिम जमानत याचिका ख़ारिज कर दी| जिससे अब उनकी मुश्किलें और बढ़ गयीं है|
भाजपा सांसद मुकेश राजपूत के भतीजे राहुल राजपूत ने फतेहगढ़ जय नारायन वर्मा रोड निवासी सपा जिला पंचायत अध्यक्ष प्रत्याशी डॉ. सुबोध यादव व मोहम्मदाबाद के जिला पंचायत सदस्य आलोक यादव पर दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज कराया था। सुबोध व उमेश ने जिला जज की अदालत में अग्रिम जमानत का प्रार्थना पत्र दिया। इसी के साथ गिरफ्तारी पर रोक लगाने और अंतरिम जमानत के लिए अर्जी दाखिल की। जिला शासकीय अधिवक्ता सुदेश प्रताप सिंह, एडीजीसी तेज सिंह राजपूत व बचाव पक्ष के वकील की दलीलें सुनने के बाद जिला जज ने दोनों आरोपियों की अंतरिम जमानत प्रार्थना पत्र खारिज कर दिया है.
अंतरिम जमानत क्या होता है?
मोटे तौर पर, ट्राजिंट एंटीसिपेटरी बेल का उद्देश्य किसी व्यक्ति को तब तक बेल देना है जब तक कि वह उपयुक्त अदालत में नहीं पहुंच जाता है, ताकि यदि पुलिस गिरफ्तारी को प्रभावित करना चाहती है, तो वह व्यक्ति बेल पर रिहा हो जाए। हालांकि, ऐसी बेल इस शर्त पर दी जाती है कि आरोपी को जांच प्रक्रिया में सहयोग करेगा।
एंटीसिपेटरी बैल का मतलब क्या है?
मोटे तौर पर, ट्राजिंट एंटीसिपेटरी बेल का उद्देश्य किसी व्यक्ति को तब तक बेल देना है जब तक कि वह उपयुक्त अदालत में नहीं पहुंच जाता है, ताकि यदि पुलिस गिरफ्तारी को प्रभावित करना चाहती है, तो वह व्यक्ति बेल पर रिहा हो जाए। हालांकि, ऐसी बेल इस शर्त पर दी जाती है कि आरोपी को जांच प्रक्रिया में सहयोग करेगा।
अग्रिम जमानत कब तक मान्य होती है?
सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि अग्रिम जमानत सामान्य तौर पर तब तक समाप्त नहीं किए जाने की जरूरत है जब तक अदालत द्वारा उसे समन किया जाए या आरोप तय किए जाएं. हालांकि यह अदालत पर निर्भर है कि ‘विशेष या खास’ मामलों में इसकी अवधि तय करे.
जमानत कितने प्रकार की होती है?
जमानत के अनुसार अपराध दो प्रकार के होते हैं- जमानती।
आईपीसी की धारा 2 के अनुसार जमानती अपराध वह है, जो पहली अनुसूची में जमानती अपराध के रूप में दिखाया हो। दूसरा गैर-जमानती। जो अपराध जमानती है, उसमें आरोपी की जमानत स्वीकार करना पुलिस अधिकारी एवं न्यायालय का कर्तव्य है।
Indian Constitution
- जमानती अपराध :- जिस में जमानत का प्रावधान है | जो अधिकार स्वरूप मिलती है |
- गैर जमानती अपराध :- जिस में जमानत का प्रावधान ही नहीं है|
कोर्ट में चार्जशीट दाखिल होने के बाद क्या होता है?
चार्जशीट दाखिल होने के बाद भी दी जा सकती है अग्रिम जमानतः इलाहाबाद हाईकोर्ट इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में माना है कि आपराधिक मामले में चार्जशीट दायर होने के बाद भी अग्रिम जमानत दी जा सकती है। … वर्तमान याचिकाकर्ता को पहले सीआरपीसी की धारा 173 (2) के तहत पुलिस रिपोर्ट प्रस्तुत करने तक अग्रिम जमानत दी गई थी Reference https://hindi.livelaw.in/category/top-stories/anticipatory-bail-can-be-granted-even-after-chargesheet-has-been-filed-allahabad-high-court-167448
गैर जमानती धाराएं कौन कौन सी हैं?
गैर जमानती अपराधों में डकैती, लूट, रेप, हत्या की कोशिश,फिरौती के लिए अपहरण और गैर इरादतन हत्या जैसे अपराध शामिल है| इस तरह के मामलों में अदालत के सामने तथ्य पेश किए जाते हैं और फिर कोर्ट जमानत पर निर्णय लेता है। गैर-जमानती अपराध करनें वाले व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के सामने पेश होना पड़ता है।