Love Story – अटल बिहारी वाजपेई की लव स्टोरी आप भी जाने कौन थी महिला मित्र
आज स्वर्गीय पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी की जयंती है हम आपके लिए आज अटल जी की उस खूबसूरत लव स्टोरी बारे में बताएंगे जिस के चर्चे दबी कुचली जवान से लगभग सभी करते थे।
यह बात उन दिनों की है 40 के दशक में अटल बिहारी वाजपेयी और राजकुमारी हकसर, ग्वालियर में विक्टोरिया कॉलेज (अब लक्ष्मीबाई कॉलेज) में पढ़ रहे थे वह भी उनके साथ पढ़ रही थीं. दौर ऐसा था कि बातें केवल आंखों ही आंखों में होती थीं या मूक जुबान बहुत प्रेम के संकेत देती थी. ज्यादा बात करने के अवसर नहीं थे. ऐसा लगता था कि प्रेम बहुत शिद्दत से एक पगडंडी तैयार करता जा रहा था. आखिरकार अटल ने इस राह पर कदम बढ़ाने की हिम्मत की. उन्होंने लवलेटर लिखा. जवाब ही नहीं आया. वह बहुत निराश हुए. उन्हें क्या मालूम था कि ये लवलेटर करीब एक-डेढ़ दशक बाद उनकी जिंदगी में हमेशा के लिए बदलने वाला है.
कुछ जानकार और किताबें इस बात का भी हवाला देती हैं कि वाजपेयी जी ने कॉलेज के दिनों में कौल को एक चिट्ठी लिख प्यार का इजहार भी किया था। लेकिन उसका कोई जवाब उन्हें कभी नहीं मिला। हालांकि, बताया यह भी जाता है कि अटल जी ने चिट्ठी जिस किताब में रखबर लाइब्रेरी में छोड़ा था, उसी किताब में राजकुमारी कौल ने जवाब भी लिखा। लेकिन वह कभी अटल जी तक पहुंचा ही नहीं।
‘अटल बिहारी वाजपेयीः ए मैन ऑफ आल सीजंस’की इस किताब में उनकी महिला मित्र के बारे में बताया गया है।
रिश्ते के लिए राजी नहीं था राजकुमारी का परिवार
ताब ‘अटल बिहारी वाजपेयीः ए मैन ऑफ आल सीजंस’ में राजकुमारी कौल के एक परिवारिक करीबी के हवाले से कहा गया है, ‘वास्तव में वह अटल से शादी करना चाहती थीं, लेकिन घर में इसका जबरदस्त विरोध हुआ। हालांकि अटल ब्राह्मण थे, लेकिन कौल अपने को कहीं बेहतर कुल का मानते थे। मिसेज कौल की सगाई के लिए जब परिवार ग्वालियर से दिल्ली आया, उन दिनों यहां 1947 में बंटवारे के दौरान दंगा मचा हुआ था। इसके बाद शादी ग्वालियर में हुई।’
भारत विभाजन के दौरान राजकुमारी के कश्मीरी पंडित पिता गोविंद नारायण हकसर ने उनकी शादी कश्मीरी पंडित बृज नारायण कौल से कर दी. दरअसल, हकसर अपनी बेटी की शादी एक शख्स नहीं करना चाहते थे, जो बाद में भारतीय राजनीति को बदलने वाला साबित हुआ. मिसेज कौल के पति बीएन कौल, रामजस कॉलेज में प्रोफेसर थे और बाद में रामजस हॉस्टल में वार्डन भी बने.
दिल्ली में फिर गहरी हुई दोस्ती
अटल जी मुख्यधारा की राजनीति में सक्रिय हो गए और इसी बीच राजकुमारी कौल के पिता ने उनकी शादी एक कॉलेज प्रोफेसर ब्रिज नारायण कौल से कर दी। शादी के बाद राजकुमारी कौल का परिवार दिल्ली यूनिवर्सिटी के रामजस कॉलेज कैम्पस में रहने लगा। कुछ सालों बाद अविवाहित वाजपेयी पूरी तरह से राजनेता बन गए. एक लंबे वक्त के बाद दिल्ली में वाजपेयी का मिसेज कौल से मिलना हुआ. उस वक्त राजकुमारी कौल, बीएन कौल की पत्नी थीं. बीएन कौल उस वक्त हॉस्टल में रहने वाले छात्रों के प्लान में रोड़ा बन जाते थे, जब वो शराब पीने के लिए देर से हॉस्टल आने की योजना बनाते थे. इस वक्त किसी ने मिसेज कौल को शिकायत करने का प्लान बनाया. जब हॉस्टल में रहने वाले छात्रों का ग्रुप कौल के घर शिकायत करने पहुंचा तो कहा जाता है कि उस वक्त उनका सामना वाजपेयी से भी हुआ.
उस हॉस्टल में रहने वाले छात्र याद करते हैं कि वह कड़े वार्डन थे. हर शाम हॉस्टल जरूर आते थे. ये 60 के दशक की बात है. उन दिनों अटल प्रोफेसर कौल के घर काफी आने लगे थे. हॉस्टल के कई छात्र जब वार्डन के घर आते थे तो उन्हें वहां देखा करते थे. अटल छात्रों से खूब बातें करते थे. मिसेज कौल भी उस बातचीत का हिस्सा बनती थीं. साथ ही छात्रों को मिठाई वगैरह खिलाती थीं.
कौल परिवार अटल के लुटियंस जोन के बंगले में रहने लगा
उस कालेज में पढ़कर बाद में आईएएस बनने वाले और बड़े पदों पर रहने वाले एक आईएएस कहते हैं कि उन दिनों में हमें अंदाज नहीं था कि, अटल और राजकुमारी की दोस्ती है. बाद में कई सालों बाद हमने उन्हें लेकर बातें सुनीं. उन दिनों जनसंघ का दिल्ली यूनिवर्सिटी के छात्रसंघ पर काफी दबदबा था. ये आईएएस जब बाद में अटल के मोरारजी देसाई की सरकार में विदेश मंत्री बनने के बाद लुटियंस जोन में उनसे मिलने उनके घर गए तो प्रोफेसर कौल, मिसेज कौल और उनकी दोनों बेटियों को वहां देखा. दरअसल अटल बाद में कौल के कालेज निवास में रहने आ गए थे.
राजकुमारी कौल ने एक इंटरव्यू में कहा था, ‘मैंने और अटल बिहारी वाजपेयी ने कभी इस बात की जरूरत नहीं महसूस की कि इस रिश्ते के बारे में कोई सफाई दी जाए।’इसमें उन्होंने कहा, ‘अटल के साथ अपने रिश्ते को लेकर मुझे कभी अपने पति को स्पष्टीकरण नहीं देना पड़ा। हमारा रिश्ता समझबूझ के स्तर पर काफी मजबूत था।’
आरोप लगे थे कि अटल के एक महिला से संबंध हैं
1968 में दीन दयाल उपाध्याय के अचानक निधन के बाद जनसंघ के अध्यक्ष के पद के लिए अटल के नाम पर विचार किया गया. तब पार्टी में उनके मजबूत प्रतिद्वंद्वी बलराज मधोक थे. मधोक ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के संरसंघ चालक एम एस गोलवरकर के साथ लाबिंग शुरू की, जिनका जनसंघ पर जबरदस्त प्रभाव था. अन्य बातों के अलावा मधोक ने अटल की अनैतिक जीवनशैली पर आरोप लगाए. उन्होंने ये भी कहा कि ऐसी शिकायतें हैं कि एक महिला उनके पास आती है. ये मिसेज कौल की इशारा था, क्योंकि अटल को अक्सर ड्रॉप करने उनके घर आती थीं. अटल के घर पर जनसंघ के और भी नेता रहते थे. हालांकि इन शिकायतों पर कुछ नहीं हुआ क्योंकि गोलवरकर ने उन्हें खारिज कर दिया.
अटल की गैरपरंपरागत जीवनशैली और उनका कौल परिवार के साथ ठहरने की बात दिल्ली के राजनीतिक हलकों में कही जाने लगी. हालांकि प्रेस ने कभी इसे बड़ा इश्यू नहीं बनाया और इसलिए अटल की व्यक्तिगत जिंदगी जांच के घेरे में नहीं आई. जिस दिन मिसेज कौल का निधन हुआ, उस दिन इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा, दोनों यानि अटल और मिसेज कौल ने अपने रिश्ते को कोई नाम नहीं दिया और दोनों ने इस पर हमेशा चुप्पी भी साधे रखी. इसे कभी हवा भी नहीं दी.
मिसेज कौल का महत्व हर कोई मानता था
मिसेज कौल के निधन पर प्रेस के एक वर्ग ने उन्हें अटल का पारिवारिक सदस्य कहा. अटल के घर से मिली रिलीज में उन्हें ऐसा ही बताया गया था. क्योंकि अटल खुद अल्जाइमर रोग से ग्रस्त हो चुके थे. लिहाजा इस रिलीज को ड्रॉफ्ट करने में उनका कोई योगदान नहीं था. हकीकत में वह अटल के जीवन का सबकुछ थीं. वह उन्हें भावनात्मक संबल देती थीं. राजनीतिक सर्किल भी मिसेज कौल के महत्व को हमेशा मानता आया है. उनका निधन जब हुआ, तब 2014 के आमचुनाव के अभियान जोरों पर था लेकिन तब भी मिसेज कौल के अंतिम संस्कार में लालकृष्ण आडवाणी, राजनाथ सिंह और सुषमा स्वराज मौजूद रहे. सोनिया भी अटल के निवास पर पहुंचीं, यहां तक कि ज्योतिरादित्य सिंधिया भी उनके अंतिम संस्कार में पहुंचे. मिसेज कौल के पिता सिंधिया रियासत में ही अफसर थे.
वह अटल की दत्तक पुत्री की मां थीं
मिसेज कौल के निधन पर ओबिचूएरी लिखते हुए अटल के पूर्व सहायक सुधींद्र कुलकर्णी ने उन्हें यानि राजकुमारी कौल को अटल की दत्तक पुत्री नमिता की मां बताया. वास्तविकता ये है कि जब अटल ने कौल के साथ रहना शुरू किया तो उन्होंने परिवार की दोनों बेटियों नमिता और नम्रता को एडॉप्ट किया. सुधींद्र अटल के प्रधानमंत्री बनने के कई साल पहले से उनसे मिलते थे. मिसेज कौल के घर जाते रहते थे. वह उन्हें दयालु महिला बताते थे, जिनका चेहरा तो मातृत्व लिए हुए था ही साथ ही दिल भी वैसा ही था.]
‘उन्होंने हमेशा अटल जी की सेवा की
कुलदीप नैय्यर ने टेलीग्राफ में लिखा था, ‘संकोची मिस कौल अटल की सबकुछ थीं। उन्होंने जिस तरह अटल की सेवा की, वह कोई और नहीं कर सकता था। वह हमेशा उनके साथ रहीं।’ दक्षिण भारत के पत्रकार गिरीश निकम ने बताया था कि अटल जी जब प्रधानमंत्री नहीं थे, तब भी मैं उनके घर पर फोन करता था तो वही फोन उठाती थीं और कहती थीं- मैं मिसेज कौल बोल रही हूं।
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी हिंदुस्तान टाइम्स को एक इंटरव्यू में बताया था, ‘हम वाजपेयी के पड़ोस में रहते थे. घरों की दीवार से लगा एक दरवाजा था. ससे कि दोनों परिवार के लोग आसानी से आ-जा सके. वो मछली के शौकीन थे. नमिता अक्सर हमारे घर आती थी. मेरी पत्नी और मिसेज कौल की अच्छी बॉन्डिंग थी. जब नमिता की शादी तय हुई तो मेरी पत्नी ने तैयारी की थी, क्योंकि दूल्हा बंगाली था. बता दें कि नमिता की शादी रंजन भट्टाचार्य से हुई थी.
अटल की बेटी शादी कैसे हुई
अटल की दत्तक पुत्री नमिता का रोमांस रंजन भट्टाचार्य से 80 के दशक में परवान चढ़ा, वैसे उनकी मुलाकात 1977 में यूनिवर्सिटी के दिनों में हो चुकी थी. रंजन ओबराय होटल में काम करते थे जबकि नमिता दिल्ली यूनिवर्सिटी के दौलत राम कॉलेज में पढ़ाई करने के बाद मौर्या होटल में काम करने लगी थीं. जब रंजन घर आने लगे तो शुरू में अटल उनसे दूरी बनाकर रखते थे लेकिन बाद में उन्होंने अटल का दिल जीत लिया और दोनों की शादी हो गई. शादी के बाद वह भी साथ रहने आ गए. वह अटल को बापजी कहते थे. जल्दी ही वह उनके बहुत करीब भी आ गए. जल्दी ही रंजन ने नौकरी छोड़ दी और खुद उद्यमी बन गए. उन्होंने मनाली में होटल बनवाया. उसके बाद कई व्यावसाय शुरू किए. कई शहरों में कार्लसन और चाणक्य होटलों के साथ संयुक्त उपक्रम शुरू किया. जब अटल की सरकार महज 13 दिनों तक चली थी, तब भी उन्होंने उसमें रंजन को ऑफिसर आन स्पेशल ड्यूटी (ओएसडी) नियुक्त किया. हालांकि जब अटल दोबारा पांच साल के प्रधानमंत्री बने तो रंजन को कोई आधिकारिक पोजिशन तो नहीं मिली लेकिन उनका प्रभाव राजनीतिक और कारोबारी सर्किल में बहुत ज्यादा था. वह प्रधानमंत्री हाउस में ही रहते थे.
मिसेज कौल की दूसरी बेटी
मिसेज कौल की दूसरी बेटी नम्रता डॉक्टर बनीं और न्यूयार्क चली गई. वह वहीं रहती हैं. उनके पिता ब्रिज नारायण कौल ने अपने आखिरी दिन उसी के साथ गुजारे. वह वहां बेहतर ट्रीटमेंट के सिलसिले में गए थे. ये अटल के प्रधानमंत्री बनने से पहले की बात है. नैयर ने लिखा है कि बेशक जब अटल प्रधानमंत्री बने तो आधिकारिक कार्यक्रमों और विदेशी दौरों में मिसेज कौल का नाम प्रोटोकाल में नहीं होता था और वह कभी प्रधानमंत्री अटल के साथ विदेश दौरों में भी नहीं गईं लेकिन उनकी मौजूदगी हर ट्रिप में महसूस होती थी.
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