कटाक्ष – 33 करोड़ देवी-देवता फिर भी ऑक्सीजन की कमी
शार्ली एब्दो’ किसी को नहीं बख़्शता! “भारत में 33 करोड़ देवी- देवता हैं मगर उनमें से एक भी ऑक्सीज़न का उत्पादन करने में सक्षम नहीं है
शार्ली एब्दो 1992 से पेरिस से प्रकाशित हो रही व्यंग्य पत्रिका है. यह पत्रिका उन कुछेक पत्रिकाओं में शामिल थी जिसने 2006 में डेनमार्क की पत्रिका जिलांड्स पोस्टेन में छपे पैगंबर मोहम्मद के कार्टूनों को प्रकाशित किया था.
इसकी वजह से इस पत्रिका को कई बार इस्लामी कट्टरपंथियों की धमकियों और हमलों का सामना करना पड़ा. नवंबर 2011 में पत्रिका के दफ्तर में आग लगा दी गई. जनवरी 2015 में एक हमवालर ने शार्ली एब्दो के दफ्तर पर हमला कर 12 लोगों को मार डाला. अन्य हमलों में 5 और लोगों की मौत हो गई जबकि दो दिनों तक हुई पुलिस कार्रवाई में तीन हमलावर मारे गए.
अब ऐसा ही एक कार्टून भारत में हो रही ऑक्सीजन की कमी को लेकर छापा है
शार्ली हेब्दो के कार्टून में तंज है कि भारत में करोड़ों देवी-देवता हैं, लेकिन कोई ऑक्सीजन की कमी पूरी नहीं कर पा रहा. हिन्दू धर्म में मान्यता है कि 33 करोड़ देवी-देवता हैं.
हिन्दू धर्म एकेश्वरवाद में भरोसा नहीं रखता है, जैसे कि इस्लाम, ईसाई और दूसरे धर्मों में है. यहाँ महिलाओं की भी ईश्वर के रूप में पूजा होती है और पुरुष देवताओं की भी. हिन्दू धर्म में कई देवी-देवता हैं और सबकी पूजा होती है.
शार्ली हेब्दो ने अपने कार्टून में 33 करोड़ की जगह 33 मिलियन देवी-देवता लिखा है. 33 मिलियन मतलब 3.3 करोड़. शार्ली हेब्दो का यह कार्टून सोशल मीडिया पर ख़ूब शेयर किया जा रहा है.
हिन्दू धर्म और भारतीय पौराणिक कथाओं की व्याख्या करने वाले जाने-माने लेखक देवदत्त पटनायक ने ट्वीट कर लिखा है, ”हिन्दुत्व के झंडाबरदार इस कार्टून को देखकर क्या कहेंगे- पहली बात ये कि 33 मिलियन क्यों? यह तो 330 मिलियन होना चाहिए था. केवल 33? दूसरी बात यह कि हम उनकी तरह सिर कलम नहीं करते. हम श्रेष्ठ हैं. लेकिन इन्हें जो चीज़ दिखनी चाहिए वो नहीं दिखती है- त्रासदी और नेताओं का नक्कारापन.”
सुप्रीम कोर्ट के वकील बृजेश कलप्पा ने इस कार्टून को ट्वीट करते हुए बीजेपी को निशाने पर लिया है. उन्होंने अपने ट्वीट में कहा है, ”बीजेपी आईटी सेल ने तब ख़ुशी मनाई थी, जब शार्ली हेब्दो ने इस्लाम को हल्के फुल्के अंदाज़ में पेश किया था. और अब?”
पत्रकार सुमित कश्यप ने लिखा, “शार्ली एब्दो मानवता के लिए महान काम कर रहा है. सवाल चाहे मुश्किल हों, चाहे ऑफेंसिव हों, वो पूछे जाने चाहिए. मानवता को बढ़ाने का यही एक रास्ता है.
शार्ली हेब्दो धार्मिक रुढ़ियों और आस्थाओं को अपने कार्टून में निशाने पर लेती रहती है. पाकिस्तान में कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन शार्ली हेब्दो को लेकर ही विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. तहरीक-ए-लब्बैक का विरोध प्रदर्शन पाकिस्तान की इमरान ख़ान सरकार के लिए सिर दर्द बन गया था.
तहरीक-ए-लब्बैक फ़्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों को लेकर विरोध-प्रदर्शन कर रहा था. पिछले साल अक्टूबर महीने में पैग़ंबर मोहम्मद के एक कार्टून को दिखाने वाले टीचर सैमुअल पेटी पर हमला कर एक व्यक्ति ने उनका गला काट दिया था. इसके बाद फ़्रांस में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए. ये कार्टून एक फ़्रांसीसी पत्रिका शार्ली हेब्दो में प्रकाशित किए गए थे.
फ़्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने पैग़ंबर मोहम्मद के विवादित कार्टून दिखाने के टीचर के फ़ैसले का बचाव किया था और कहा था कि वे मुस्लिम कट्टरपंथी संगठनों के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई करेंगे.
उन्होंने कहा था, ”फ़्रांस के अनुमानित 60 लाख मुसलमानों के एक अल्पसंख्यक तबक़े से ‘काउंटर-सोसाइटी’ पैदा होने का ख़तरा है. काउंटर सोसाइटी या काउंटर कल्चर का मतलब एक ऐसा समाज तैयार करना है जो कि उस देश के समाज की मूल संस्कृति से अलग होता है.”
इसके बाद फ़्रांस में नीस शहर के चर्च नॉट्रे-डेम बैसिलिका में एक व्यक्ति ने चाकू से हमला कर दो महिलाओं और एक पुरुष की जान ले ली.
इस पर राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने कहा था, ”मेरा ये संदेश इस्लामिक आतंकवाद की मूर्खता झेलने वाले नीस और नीस के लोगों के लिए है. ये तीसरी बार है जब आपके शहर में आतंकवादी हमला हुआ है. आपके साथ पूरा देश खड़ा है.”
”अगर हम पर फिर से हमला होता है तो यह हमारे मूल्यों के प्रति संकल्प, स्वतंत्रता को लेकर हमारी प्रतिबद्धता और आतंकवाद के सामने नहीं झुकने की वजह से होगा. हम किसी भी चीज़ के सामने नहीं झुकेंगे. आतंकवादी ख़तरों से निपटने के लिए हमने अपनी सुरक्षा और बढ़ा दी है.”
इमैनुएल मैक्रों के इस फ़ैसले पर कुछ मुसलमान बहुल देश में नाराज़गी ज़ाहिर की गई. कई देशों ने फ़्रांसीसी सामान के बहिष्कार की भी अपील की. तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन ने कहा था कि अगर फ़्रांस में मुसलमानों का दमन होता है तो दुनिया के नेता मुसलमानों की सुरक्षा के लिए आगे आएं. फ़्रांसीसी लेबल वाले सामान न ख़रीदें.
ऐसा ही विरोध प्रदर्शन पाकिस्तान में भी देखने को मिला था. तहरीक-ए-लब्बैक एक कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन है और ये इमरान ख़ान की सरकार से मांग कर रहा है कि फ़्रांस के राजदूत को इस्लामाबाद से वापस भेजा जाए. इसे लेकर इमरान ख़ान की सरकार को संसद में बहस भी करानी पड़ी थी.
फ़्रांस में पैग़ंबर मोहम्मद के एक कार्टून को दिखाने वाले टीचर सैमुअल पेटी की हत्या कर दी गई