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आज के ही दिन नेहरू-लियाकत समझौता हुआ था

आठ अप्रैल 1950 में नेहरू-लियाकत समझौता हुआ था जिसे दिल्ली समझौते के नाम से भी जाना जाता है.

भारत और पाकिस्तान के बीच आठ अप्रैल 1950 को हुए दिल्ली समझौते का खास मकसद था दोनों देशों में अल्पसंख्यकों के अधिकारों को सुरक्षित करना और भविष्य में युद्ध की संभावनाओं को खत्म करना. नई दिल्ली में छह दिनों तक चली बातचीत के बाद भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली खान ने इस समझौते पर दस्तखत किए.

दिल्ली समझौते के तहत लूटी गई संपत्ति की वापसी और दबाव डालकर धर्म परिवर्तन पर रोक की बातें तय हुईं. इसके बाद दोनों देशों में अल्पसंख्यक कमेटी के गठन हुए. इसके साथ ही करीब दस लाख से ज्यादा शरणार्थी पूर्वी पाकिस्तान से, जो कि अब बांग्लादेश है, भारत के पश्चिम बंगाल आए.

भारत और पाकिस्तान के विभाजन के बाद 1949 में स्थिति बेहद तनाव पूर्ण रही. दोनों देशों के बीच हिन्दू मुस्लिम शरणार्थियों के अलावा आर्थिक मामलों को लेकर भी खींचतान चलती रही. ऐसे में हालात को काबू में करने के लिए दोनों देशों के बीच वार्ता के बाद इस नतीजे पर पहुंचा गया. हालांकि कश्मीर को लेकर दोनों देशों के बीच तनाव जारी रहा, जो कि आज भी ठंडा नहीं पड़ा है.

दोनों देशों में अल्पसंख्यक आयोग गठित किए गए। भारत में पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश ) से पश्चिम बंगाल में दस लाख से अधिक शरणार्थी पलायन कर पहुँचे।

नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, २०१९ को पारित करने से पहले हुई लोक सभा बहस में (नागरिकता संशोधन) विधेयक को सही ठहराते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने इस समझौते का उल्लेख किया। उन्होंने नेहरू-लियाकत समझौते को इस संशोधन की वजह बताते हुए कहा, यदि पाकिस्तान द्वारा संधि का पालन किया गया होता, तो इस विधेयक को लाने की कोई आवश्यकता नहीं होती।

विरोध
दिल्ली पैक्ट के नाम से भी मशहूर इस समझौते का विरोध करते हुए नेहरू सरकार में उद्योगमंत्री रहे डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने इस्तीफा दे दिया था। मुखर्जी तब हिंदू महासभा के नेता थे। उन्होंने समझौते को मुस्लिम तुष्टिकरण करने वाला बताया था।

नेहरू-लियाकत समझौते ने अपने घोषित उद्देश्यों को हासिल किया या नहीं, यह बहस का विषय बना हुआ है। हालांकि, नेहरू-लियाकत समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद महीनों तक पूर्वी पाकिस्तान के हिंदुओं का पलायन भारत के पश्चिम बंगाल में जारी रहा।

1966 में बहस
अगस्त 1966 में, भारतीय जनसंघ के नेता निरंजन वर्मा ने तत्कालीन विदेश मंत्री सरदार स्वर्ण सिंह से तीन प्रश्न पूछे।

पहला सवाल: नेहरू-लियाकत समझौते की वर्तमान स्थिति क्या है?

दूसरा सवाल: क्या दोनों देश अभी भी समझौते की शतरें के अनुसार कार्य कर रहे हैं?

तीसरा सवाल: वह साल कौन सा है, जब से पाकिस्तान समझौते का उल्लघंन कर रहा है?

स्वर्ण सिंह ने अपने जवाब में कहा, 1950 का नेहरू-लियाकत समझौता भारत और पाकिस्तान के बीच एक स्थायी समझौता है। दोनों देशों को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि अल्पसंख्यकों को भी नागरिकता के समान अधिकार प्राप्त हों।

दूसरे सवाल पर, स्वर्ण सिंह ने जवाब दिया, हालांकि भारत में, अल्पसंख्यकों के अधिकारों और सुरक्षा को लगातार और प्रभावी रूप से संरक्षित किया गया है, पाकिस्तान ने अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों की लगातार उपेक्षा और उत्पीड़न करके समझौते का लगातार उल्लंघन किया है।

तीसरे प्रश्न का उत्तर नेहरू-लियाकत समझौते की विफलता के बारे में अमित शाह द्वारा किए गए दावे को परिलक्षित करता है। स्वर्ण सिंह ने कहा, इस तरह के उल्लंघनों के उदाहरण समझौते होने के तुरंत बाद ही सामने आने लगे थे।

2019 में गृह मंत्री का बयान

नागरिकता संशोधन विधेयक का बचाव करते हुए, अमित शाह ने दोहराया कि पाकिस्तान और बांग्लादेश विभाजन के बाद धार्मिक अल्पसंख्यकों की रक्षा करने में विफल रहे। उन्होंने कहा, मोदी सरकार इस ऐतिहासिक गलती को सही कर रही है।

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