उत्तरप्रदेश

क्या भारतीय जनता पार्टी ने हिंदू गुर्जर समाज को राजनीतिक रूप से विकलांग कर दिया ?

भारतीय जनता पार्टी में शामिल उत्तरप्रदेश के गुज्जर विरादरी के नेताओं को कितना सम्मान बीजेपी की तरफ से दिया गया आज वह किस हाल में पार्टी के साथ जुड़े हुए है

देखा जाए तो हिंदू धर्म का झंडा उठाने में गुज्जर समाज हमेशा से आगे रहा है साइन बाग में धरने में गोली चलाने वाला आरोपी युवक कपिल गुर्जर हो या किसान आंदोलन के विरोध में लोनी के विधायक नंदकिसोर गुर्जर हो |

हर जगह गुज्जर भाजपा की विचारधारा को मजबूती से आगे बढ़ाते आये है, पर उनको मिला क्या योगी सरकार के कार्यकाल के 5 साल होने वाले हैं 3 महीने बचे हैं कैबिनेट का विस्तार भी 3 महीने पहले किया है उसमें भी गुज्जर समाज के हाथ में कुछ नहीं लगा। अगर ऐसा ही रहा तो भाजपा की मुश्किल पश्चिम उत्तर प्रदेश में बढ़ सकती है क्योंकि 2013 की मुजफ्फरनगर दंगे के बाद जाटों ने दिल खोलकर भाजपा को वोट किया था और किसान आंदोलन ने लगभग पूरी कौम को भाजपा से अलग खड़ा कर दिया है अब गुर्जर समाज को हाशिये पर रख के क्या सन्देश देना चाह रही है बीजेपी, ये बेरुखी भरा रुख उत्तरप्रदेश में २०२२ विधानसभा चुनाव में भाजपा को बहुत बड़ा नुकसान पहुंचा सकता है

चुनाव सर पर है और गुर्जर समाज जो पश्चिम उत्तर प्रदेश में इतना काफी दबदबा रखता है जाट और दलित वोट के बाद गुर्जर समाज काफी सीटों पर बहुलता में है क्योंकि गुर्जर बिरादरी पश्चिम उत्तर प्रदेश में नोएडा, बागपत, सहारनपुर, कैराना और बिजनौर की सभी सीटों को सीधे प्रभावित करती है। इन सभी सीटों पर गुर्जर बिरादरी के मतदाता अच्छी संख्या में हैं। यही दर्द जब उपेक्षा के शिकार होने का आरोप लगाते हुए इन गुर्जर नेताओं का अपने सम्मेलन में लगातार सामने आता रहा हैं

वेस्ट यूपी में गुर्जरों के गणित

गौतमबुद्धनगर – 3 लाख
सहारनपुर -2 . 5 लाख
मेरठ – 1. 5 लाख
हापुड़ – 1. 5 लाख
अमरोहा – 1. 5 लाख
गाजियाबाद – 1. 5 लाख
मुजफ्फरनगर 1. 25 लाख

कुल मिला कर इस तरह वेस्ट यूपी के इन जिलों में गुर्जर वोटर्स की संख्या करीब 14 लाखके आसपास है।
वेस्ट यूपी में गुर्जरों के गणित की बात करें तो आधा दर्जन जिलों में गुर्जरों का बोलबाला है। सबसे ज्यादा गुर्जरों की संख्या यूपी का शो विंडो कहे जाने गौतमबुद्धनगर में ही है।

इनमें कई नाम तो है ऐसे हैं जो दूसरी पार्टियों में कैबिनेट मंत्री तक रहे है गुर्जर वोटरों को समेटने के लिए इनको बीजेपी में शामिल तो करवाया और कोई खास राजनैतिक सामजिक भगीदारी न देकर राजनीतिक रूप से पैदल कर दिया।

मनोज चौधरी

सहारनपुर में बसपा नेता व पूर्व विधायक मनोज चौधरी को भाजपा ने 2017 में बीजेपी लेकर आई और शामिल करवाने के बाद उनको नंगे हाथ छोड़ दिया गया कह सकते हैं राजनीतिक रूप से विकलांग कर दिया गया।

मुकेश चौधरी

उसके बाद 2019 चुनाव में सहारनपुर से पूर्व ब्लाक प्रमुख मुकेश चौधरी को भाजपा में लाया गया उनको भी खाली हाथ छोड़ दिया गया.

हुकुम सिंह

पश्चिम उत्तर प्रदेश के जिले शामली खाटी नेता हुकुम सिंह के रूप में भाजपा के पास एक बड़ा चेहरा हमेशा से मौजूद रहा उनकी मृत्यु के उपरांत उनकी राजनीतिक विरासत संभालने वाली उनकी बेटी मृगांका सिंह को आज तक भाजपा ने कुछ नहीं दिया यहां तक 2019 लोकसभा सीट में कराना से उनका टिकट भी काट दिया। हुकुम सिंह भाजपा की कठिन समय में भी पश्चिम उत्तर प्रदेश में लंबे समय तक भाजपा को मजबूत स्थिति प्रदान करते आए हैं उन्होंने हमेशा कराना विधानसभा एवं कैराना लोकसभा सीट पर विजय हासिल की थी

आयुष पंवार

छात्र राजनीति की नर्सरी मेरठ विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र नेता आयुष पवार बीजेपी के साथ पिछले आठ 9 वर्षों से पार्टी में युवा वर्ग को भारी संख्या में जोड़ने का काम करते आ रहे हैं पश्चिम उत्तर प्रदेश की राजनीति में ऐसा युवा चेहरा जिसको मेरठ की राजनीति में भाजपा हाशिए पर लगातार रख रही है जबकि आयुष पवार को पिछले 2 साल से प्रदेश मंत्री की जिम्मेदारी मिली हुई थी जो वह बखूबी निभा रहे थे। लगातार नए नए चेहरों को जोड़ने का काम आयुष पवार ने किया। जिससे कि भाजपा को भविष्य की राजनीति में अच्छा फायदा मिल सके|

अवतार सिंह भड़ाना

मुजफ्फरनगर कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे अवतार सिंह भड़ाना को लेकर 2017 विधानसभा चुनाव में भाजपा में शामिल करवाया गया। और अब तक खाली हाथ छोड़ा गया। अवतार सिंह भड़ाना कीमीरापुर विधानसभा सीट में 16 से 60 फ़ीसदी मुसलमानों की वोट है अवतार सिंह भड़ाना ने वह सीट जितवा कर भाजपा की झोली में डाली । अवतार सिंह भड़ाना दो बार सांसद रह चुके हैं पिछड़े वर्ग के नेताओं को चूस कर छोड़ देने वाली रणनीति से दुखी होकर अवतार सिंह भड़ाना ने भाजपा से इस्तीफा दे दिया और मुखर होकर पार्टी का विरोध कर रहे हैं

प्रशांत चौधरी

गाजियाबाद बसपा के पूर्व विधायक श्री प्रशांत चौधरी को भाजपा में शामिल करवाया गया और उनकी पत्नी जो खुद भी पूर्व विधायक थी बागपत सीट से उनको भी कुछ नहीं दिया गया

नवाब सिंह नागर

नोएडा पार्टी की स्थापना के समय से ही भाजपा के मजबूत जारी रहे एवं उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री रहे संगठन के खाटी नेता नवाब सिंह नागर को भी भाजपा ने बर्फ में लगा दिया

रामसकल गुर्जर

आगरा की पार्टी में स्वतंत्र प्रभार मंत्री रहे रामसकल गुर्जर को भी 2019 लोकसभा चुनाव में लाकर कुछ ना देख कर बर्फ में लगा कर रख दिया गया |

दादरी नोएडा प्रकरण में भी सम्राट मिहिर भोज को लेकर उपजे विवाद में योगी सरकार ने गुर्जरों हाशिए पर धकेल दिया। जबकि इसको लेकर लगातार बहुत प्रदर्शन हो रहे हैं आने वाले विधानसभा में भाजपा को गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं

इतिहास : कौन है ये गुर्जर और कहा से आये

प्राचीन इतिहास के जानकारों के अनुसार गूजर मध्य एशिया के कॉकेशस क्षेत्र ( अभी के आर्मेनिया और जॉर्जिया) से आए थे लेकिन इसी इलाक़े से आए आर्यों से अलग थे.

कुछ इतिहासकार इन्हें हूणों का वंशज भी मानते हैं.

भारत में आने के बाद कई वर्षों तक ये योद्धा रहे और छठी सदी के बाद ये सत्ता पर भी क़ाबिज़ होने लगे. सातवीं से 12 वीं सदी में गूजर कई जगह सत्ता में थे.

गुर्जर-प्रतिहार वंश की सत्ता कन्नौज से लेकर बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात तक फैली थी.

मिहिरभोज को गुर्जर-प्रतिहार वंश का बड़ा शासक माना जाता है और इनकी लड़ाई बिहार के पाल वंश और महाराष्ट्र के राष्ट्रकूट शासकों से होती रहती थी.

12वीं सदी के बाद प्रतिहार वंश का पतन होना शुरू हुआ और ये कई हिस्सों में बँट गए.

गूजर समुदाय से अलग हुए सोलंकी, प्रतिहार और तोमर जातियाँ प्रभावशाली हो गईं और राजपूतों के साथ मिलने लगीं.

अन्य गूजर कबीलों में बदलने लगे और उन्होंने खेती और पशुपालन का काम अपनाया.

ये गूजर राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर जैसे राज्यों में फैले हुए हैं.

इतिहासकार कहते हैं कि विभिन्न राज्यों के गूजरों की शक्ल सूरत में भी फ़र्क दिखता है.

राजस्थान में इनका काफ़ी सम्मान है और इनकी तुलना जाटों या मीणा समुदाय से एक हद तक की जा सकती है.

उत्तर प्रदेश, हिमाचल और जम्मू-कश्मीर में रहने वाले गूजरों की स्थिति थोड़ी अलग है जहां हिंदू और मुसलमान दोनों ही गूजर देखे जा सकते हैं जबकि राजस्थान में सारे गूजर हिंदू हैं.

मध्य प्रदेश में चंबल के जंगलों में गूजर डाकूओं के गिरोह सामने आए हैं.

समाजशास्त्रियों के अनुसार हिंदू वर्ण व्यवस्था में इन्हें क्षत्रिय वर्ग में रखा जा सकता है लेकिन जाति के आधार पर ये राजपूतों से पिछड़े माने जाते हैं.

पाकिस्तान में गुजरावालां, फैसलाबाद और लाहौर के आसपास इनकी अच्छी ख़ासी संख्या है.

भारत और पाकिस्तान में गूजर समुदाय के लोग ऊँचे ओहदे पर भी पहुँच हैं. इनमें पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति फ़ज़ल इलाही चौधरी और कांग्रेस के दिवंगत नेता राजेश पायलट शामिल हैं.

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