कोरोना बीमार : हर आवाज़ में डर, हर चेहरा नाउम्मीद
जिन घरों मे कोविड ने अपनी दस्तक दे दी है, वो डर के साए में है. लेकिन इस वक्त हर आवाज में डर का बसेरा है और चेहरे पर नाउम्मीदी पसरी है.
फारबिसगंज (Bihar) में दवाई के काम से जुड़े कृष्णा मिश्रा फोन पर कहते है, “रोज लोग सिर्फ अपने परिजनों के मरने की सूचना देने और मदद मांगने के लिए फोन करते हैं. कहीं से कोई अच्छी खबर सुनाई नहीं देती. ऐसा लगता है जैसे मौत नाच रही है.”
जिन लोगों का रोजाना लाश से साबका पड़ता था, वो भी इस डर की डोर में बंधे. 64 साल के नवल किशोर शर्मा 1985 से लाश की फोटोग्राफी करते थे. मोबाइल क्रांति के बाद अब वो पटना के बांसघाट स्थित विद्दुत शवदाह गृह में दाह संस्कार में इस्तेमाल होने वाले सामान की दुकान लगाते हैं.
उन्होंने Gaaon.com से फ़ोन पर बताया, “13 अप्रैल को यहां 35 लाश आई थी. यहां एक बिजली वाली मशीन ख़राब है तो दूसरी की भी स्थिति अच्छी नहीं है. वो भी ख़राब होती रहती है. सुबह से जो आदमी अपने परिजन को जलाने के लिए लाइन लगाता है तो पांच-छह घंटे के इंतज़ार के बाद ही उसका नंबर आता है. बाकी यहां पर लाश जलाने के नाम पर दलाल सक्रिय है और इस आपदा में भी खूब लूट मची है. बीमारी इंसान तो खा ही रही है लेकिन बीमारी जाने के बाद इंसानियत भी नहीं बचेगी.”