हिटलर एक बार अपने साथ संसद में एक मुर्गा लेकर आए और सबके सामने एक-एक करके उसके पंख नोंचने लगे। मुर्गा दर्द से तिलमिलाता रहा। इस पर भी हिटलर ने एक-एक करके उसके सारे पंख नोंच दिये और फिर मुर्गे को फर्श पर फेंक दिया।
तब हिटलर ने अपनी जेब में से कुछ दाने निकालकर मुर्गे की तरफ फेंक दिए और चलने लगा। मुर्गा दाने ख़ाता हुआ हिटलर के पीछे चलने लगा।
हिटलर बराबर दाने फेंकता गया और मुर्गा बराबर दाने मुँह में डालता हुआ उसके पीछे चलता रहा। आख़िरकार वह मुर्गा हिटलर के पैरों में आ खड़ा हुआ। हिटलर ने स्पीकर की तरफ देखा और एक तारीखी जुमला बोला, `लोकतांत्रिक देशों की जनता इस मुर्गे की तरह होती है। उसके हुकुमत और हुक्मरान जनता का पहले तो सब कुछ लूटकर उसे अपाहिज कर देते है, और बाद में उन्हें थोड़ी सी खुराक दे-देकर उनका मसीहा बन जाते हैं।
आज उसी हिटलर की विचार धारा का एक शासक भारत में किसान रूपी मुर्गे के पंख नोंच रहा है कभी २८% जी एस टी लगा कर। तो कभी खाद विजली डीज़ल और उर्वरकों के दाम बड़ा और दाने रूप (किसान सम्मान निधि ) दाने डाल कर, और गरीब रूपी मुर्गा जो भारत की आम जनता है उसको मुफ्त में अन्नाज के दाने और दिन प्रतिदिन महंगाई रूपी हथियार से उस जनता के पंख नोच रहा है। जनता उस भारतीय हिटलर के दानो से ही खुश है